आयुर्वेदिक कफ सिरप और घरेलू उपचार बच्चों के लिए सुरक्षित और प्रभावी: विशेषज्ञों की राय

नई दिल्ली, 8 अक्टूबर  देशभर में बच्चों को दी जाने वाली खांसी की दवाओं की गुणवत्ता को लेकर चिंताओं के बीच आयुर्वेदिक और पारंपरिक घरेलू उपचार एक सुरक्षित और प्रभावी विकल्प के रूप में सामने आ रहे हैं। अखिल भारतीय चिकित्सक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आर.पी. पाराशर ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि आयुर्वेदिक कफ सिरप और जड़ी-बूटियों से बने घरेलू उपचार दो साल से अधिक उम्र के बच्चों को बिना किसी भय के दिए जा सकते हैं।

यह बयान ऐसे समय में आया है जब मध्य प्रदेश में कथित जहरीले कफ सिरप से कई बच्चों की मौत की खबरें आई हैं, जिससे अभिभावकों और चिकित्सकों में चिंता बढ़ गई है। इसके मद्देनज़र, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (DGHS) ने 3 अक्टूबर को सभी राज्यों को परामर्श जारी कर दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप और सर्दी-खांसी की दवाएं देने पर रोक लगाने की सलाह दी थी।

परामर्श में कहा गया है कि आम तौर पर पांच साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप नहीं दिया जाना चाहिए, और इससे अधिक उम्र के बच्चों को भी दवाएं देने से पहले सावधानीपूर्वक नैदानिक मूल्यांकन, निगरानी और उचित खुराक का पालन जरूरी है।

डॉ. पाराशर ने कहा कि आयुर्वेदिक उपचार न केवल सुरक्षित हैं, बल्कि बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में भी मदद करते हैं। उन्होंने बताया कि छह माह से कम उम्र के बच्चों को खांसी-जुकाम की स्थिति में छाती पर हल्के गर्म घी या सरसों के तेल से मालिश करनी चाहिए।

उन्होंने छह माह से अधिक उम्र के बच्चों के लिए बताया कि दूध में तुलसी, अदरक, लौंग, काली मिर्च और खजूर उबालकर देने से उन्हें तुरंत राहत मिलती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।

डॉ. पाराशर ने बताया कि आयुर्वेदिक कफ सिरप तुलसी, मुलेठी, काकड़सिंगी, भारंगी, पुष्करमूल, बहेड़ा, पिप्पली, दालचीनी और तेजपत्ता जैसी जड़ी-बूटियों से बनाए जाते हैं, जिनका बच्चों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता।

इसके अतिरिक्त, सितोपलादि चूर्ण और तालिशादि चूर्ण को शहद के साथ या फिर वासावलेह और अगस्त्य हरीतकी जैसी पारंपरिक औषधियों को भी बच्चों को सुरक्षित रूप से दिया जा सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि उचित मार्गदर्शन के साथ पारंपरिक आयुर्वेदिक उपचार बच्चों के लिए न केवल लाभकारी हैं, बल्कि जहरीली या असुरक्षित दवाओं के खतरों से भी बचाव करते हैं।

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