स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने उच्चतम न्यायालय में वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए जनहित याचिका दायर की

नई दिल्ली, 6 नवंबर: देश में बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर को देखते हुए एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ल्यूक क्रिस्टोफर कोटिन्हो ने उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि वायु प्रदूषण अब “जन स्वास्थ्य आपात स्थिति” के स्तर तक पहुंच गया है और इसे नियंत्रित करने के लिए निरंतर और प्रणालीगत विफलता को दूर करने हेतु न्यायिक हस्तक्षेप जरूरी है।

याचिका में केंद्र सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CQUM), नीति आयोग, कई केंद्रीय मंत्रालयों और दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र की राज्य सरकारों को पक्षकार बनाया गया है। याचिका में तर्क दिया गया है कि मौजूदा वायु प्रदूषण संकट संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर रहा है।

याचिका में वायु प्रदूषण को राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति घोषित करने और इसके समाधान के लिए समयबद्ध राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार करने का अनुरोध किया गया है। इसमें कहा गया है कि 2019 में शुरू किए गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) का लक्ष्य 2024 तक पीएम (Particulate Matter) में 20-30 प्रतिशत की कमी लाना था, जिसे बाद में 2026 तक 40 प्रतिशत बढ़ाया गया, लेकिन कार्यक्रम अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पाया। जुलाई 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार, 130 नामित शहरों में से केवल 25 ने पीएम10 स्तर में 40 प्रतिशत की कमी हासिल की, जबकि 25 अन्य शहरों में प्रदूषण में वृद्धि देखी गई।

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि अकेले दिल्ली में 22 लाख स्कूली बच्चों के फेफड़ों को अपरिवर्तनीय क्षति पहुंच चुकी है, जिसकी पुष्टि सरकारी और चिकित्सा अध्ययनों से हुई है। साथ ही, वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणालियों को अपर्याप्त बताया गया है।

अधिकारियों से अनुरोध किया गया है कि वायु गुणवत्ता और जन स्वास्थ्य पर एक राष्ट्रीय कार्यबल गठित किया जाए, जिसकी अध्यक्षता स्वतंत्र पर्यावरणीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ करें। इसके अतिरिक्त, याचिका में पराली जलाने पर तत्काल रोक लगाने, किसानों को प्रोत्साहन देने और टिकाऊ विकल्प उपलब्ध कराने, उच्च उत्सर्जन वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने और ई-मोबिलिटी व सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने का भी सुझाव दिया गया है।

विशेषज्ञ ने न्यायालय से आग्रह किया है कि वायु प्रदूषण के गंभीर स्वास्थ्य प्रभावों को देखते हुए तत्काल और ठोस कदम उठाए जाएं, ताकि नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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